Navratri 2019 : जानिए कब करें कलश स्थापना  ,पूजन की सही विधि और किस राशि के लिए होगा खास

नवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो नौ रातों (और दस दिनों) तक फैला है और हर साल शरद ऋतु
में मनाया जाता है। यह विभिन्न कारणों से मनाया जाता है और भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग


तरीके से मनाया जाता है।सैद्धांतिक रूप से, चार मौसमी नवरात्रि हैं।हालाँकि, व्यवहार में, यह शारदा नवरात्रि नामक मानसून के बाद का त्योहार है जो दिव्य स्त्री अम्बा/अम्बेदेवी (दुर्गा) के सम्मान में सबसे अधिक मनाया जाता है।,त्योहार हिंदू कैलेंडर माह अश्विन के उज्ज्वल आधे में मनाया जाता हैजो आमतौर पर सितंबर और अक्टूबर के ग्रेगोरियन महीनों में पड़ता है।

29 सितंबर को प्रात: 9.56 से स्थिर लग्न प्रारम्भ हो जाएगा जो बारह बजे तक रहेगा। इसी समय शुभ चौघड़िया मुहूर्त भी मिलेंगे। इसलिए, यह समय श्रेष्ठ है।  सुबह 6.16 से 07.40 बजे तक का समय कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ है।  
प्रात: 6.17 से प्रात: 7.40


 पूर्वाह्न 11.48 से 12.35 बजे तक


 अभिजीत मुहूर्त- 6.01 से 7.25 बजे तक


अन्य मुहूर्त-


 चंचल-7.48 से 9.18 प्रात:


लाभ- 9.18 से 10.47 प्रात:


अमृत- 10.47 से 12.17 अपराह्न


शुभ लाभ- 01.47 से 3.16 अपराह्न


06.15 से 7.46 सायंकाल


रात्रि अमृत चौघड़िया- 
7.46 से 9.16 बजे तक ( यह समय केवल साधकों के लिए है। या उनके लिए जो काली या पीतांबरा देवी के उपासक हैं)



आज नवरात्रि का पहला दिन है। यूं तो आज का दिन सभी राशियों के लिए शुभ रहने वाला है लेकिन यह दिन मेष, वृषभ, कन्या के लिए अति उत्तम रहेगा।
आज का शुभ रंग-
आज का शुभ रंग लाल है। यह रंग मां शैलपुत्री को बहुत प्रिय है।
नवरात्र के पहले दिन पूजा करते समय भक्त लाल रंग के वस्त्र पहनें करें।
शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत होने से विभिन्न उपलब्धियां और आरोग्य प्राप्त होता है।
आज के दिन का महत्व
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। इसीलिए इनकी उपासना से ही नवरात्र प्रारंभ होते हैं। इस दिन योगी अपने मन को मूलाधर
चक्र में प्रवेश स्थित करते हैं और यहीं से योगसाधना का आरंभ होता है।

शारदीय नवरात्र आज रविवार से प्रारम्भ हो रहे हैं। यह आठ अक्तूबर तक चलेंगे। इस बार नौ दिन में नौ अद्भुत और मंगलकारी संयोग मिल रहे हैं। दो दिन अमृत सिद्धि, दो दिन  सर्वार्थ सिद्धि, दो दिन रवि योग मिलेंगे। दो सोमवार भी होंगे जो शिवा शक्ति के प्रतीक हैं। आश्विन नवरात्र को देवी ने अपनी वार्षिक पूजा कहा है। भगवती कहती हैं, यह पूजा मुझे अत्यंत प्रिय है क्यों कि इस दिन मैं अपना वचन पूरा करते हुए सृष्टि लोक में आती हूँ।
आज से देवी मंडपों में शैलपुत्री की आराधना के साथ नवरात्र का प्रारम्भ होगा। इस बार नौ दिन के नवरात्र हैं। देवी भगवती इस बार हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। घोड़े पर ही उनकी विदाई होगी। हाथी दिग-दिगंत का प्रतीक है। वर्षा और प्रकृति का प्रतीक भी है। हाथी की सवारी शुभ मानी गई है और यह कहा जाता है कि धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी।
बहुत समय बाद 9 नवरात्र -
काफी समय बाद शारदीय नवरात्र व्रत पूरे नौ दिन के होंगे। 29 सितंबर से प्रारम्भ होकर 8 अक्तूबर तक यह चलेंगे। 8 अक्टूबर को विजय दशमी है। इस दिन देवी प्रतिमाओं का विसर्जन होगा। बहुत समय बाद किसी तिथि का क्षय नहीं है। क्रमवार सभी नवरात्र व्रत होंगे। पहला दिन शिव शक्ति, दूसरा दिन ब्रह्म शक्ति, तीसरा दिन रुद्र शक्ति, चौथा दिन साध्य शक्ति, पांचवा दिन शिव शक्ति, सातवां दिन काल शक्ति, आठवां और नवां दिन विष्णु शक्ति का प्रतीक है।
नौ दिन में 9 का संयोग और फल-
इस बार शारदीय नवरात्र का प्रारम्भ रविवार को हस्त नक्षत्र में हो रहा है। इस बार नौ दिन के व्रत में नौ का अद्भुत संयोग मिलेगा। पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और द्विपुष्कर योग मिलेगा। दूसरा संयोग-तिथियों में क्षय नहीं, तीसरा संयोग-नवरात्र के पहले दिन शुक्र का उदय, चौथा संयोग-नवऱात्र में दो रविवार और दो सोमवार पड़ेंगे ( सोमवार का दो होना शुभ माना जाता है), पांचवा संयोग- 26 नक्षत्रों में तेरहवें नक्षत्र हस्त से नवरात्र का प्रारम्भ, छठा संयोग-नवरात्र के दूसरे और चौथे दिन अमृत सिद्धि योग, सातवां संयोग-नवरात्र में दो रवि योग, आठवां संयोग- चार   सर्वार्थसिद्धि योग ( 29 सितंबर, 2, 6 और 7 अक्तूबर) और नौवां संयोग-भगवती की हाथी की सवारी।  



किस दिन क्या संयोग - 
29 सितंबर- सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग
1 अक्टूबर- रवि योग
2 अक्टूबर- रवि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग 
3 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग 
4 अक्टूबर- रवि योग 
6 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग 
7 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग व रवि योग


इस मंत्र से करें कलश का स्थापना-


ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, ऊं दुं दुर्गायै नम:


ऊं ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे, ऊं श्रीं ऊं
ऊं ह्लीं ऊं ( पीतांबरा या दश महाविद्या उपासक उपासक)


पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएं-


कलश पर कलावा बांधे, 5 7 या 9 घेरे में इतने ही घेरे पर नारियल में चुन्नी बांधकर कलावा बांध दें। याद रखें, एक पान भी नारियल पर लगा दें।अब खड़े होकर माँ से प्रार्थना करें कि भगवती हमारे घर में सुख शांति का वास हो। यह प्रार्थना नारियल को माथे पर लगाकर करनी है। बारी बारी घर के सभी लोग माथे पर लगाएं। फिर यह मंत्र पढ़ते हुए कलश स्थापना कर दें...ॐ ऐं श्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे


ध्यान रखें-
कलश स्थापना बैठकर न करें।
गुरु, गणेश जी, शंकर जी, देवी दुर्गा, विष्णु जी, ठाकुर जी, नवग्रह, भैरों बाबा और फिर हनुमानजी। तदुपरांत फिर तीन देवियों का ध्यान। फिर मंत्र पढ़ते हुए कलश स्थापना। 


अकेले ध्यान करके कलश स्थापना न करें। क्यों कि नवरात्र से सभी देवी के गण का आगमन हो जाता है।


यदि प्रतिपदा को कलश स्थापना नहीं कर पाएं तो 2, 5, 7 नवरात्र को भी कलश स्थापना हो सकती है। लेकिन यह पूर्णकालिक नहीं होगा।


यदि कोई व्रत किसी कारण से रह जाये तो देवी एकादशी और देवी चतुर्दशी को पूरा कर सकते हैं। प्रतिपदा से चतुर्दशी पर ही नवरात्र पूर्ण होते हैं। 9 रात्रि हैं और पांच अहोरात्रि। यह अन्य रात्रियों से अलग हैं।


 लाभकारी पाठ


नील सरस्वती स्त्रोत 3
1 बार अर्गला
1 सिद्ध कुंजिका या देवी सूक्तम
ग्रह दशा में सप्त श्लोकी दुर्गा का पाठ। सम्पुट...नवग्रह मंत्र। जैसे आप पर शनि की महा दशा है तो पहले शनि मंत्र पढ़ें...ॐ शं शनिश्चराये नमः...फिर देवी मंत्र। इसी तरह बाकी महादशा में भी करें।
 
जप 
किसी भी मंत्र की उतनी ही माला करें, जो प्रतिदिन कर सकें। कम ज़्यादा न हों।


ज्योति स्थापन
कपूर से प्रज्ज्वलित करें। 


 


Posted by -  Anand Pandey